ओ ओ बढ्नेवाले मुसाफिरों ...... अपने मार्ग से मत फिरो
जैसा बोलो तुम वैसा करो ,
दुनियाँ में नेक दिलवालों
आते हैं राह में टकराते रोडें
भाते हैं पावो में झंझट के झाडें ,
मुस्कातेही तुम उन सबको फाडो,
हिमंत न हारो पीछे मत मोडो ||
पनघट के पोते मरघट के नाते
करते हैं उम्मीद से हमदर्दी बातें
आफ़त में साथी कोई न होते
उल्फ़त के फूलें ठुकराए जातें ||
कवि : के सी चंद्रशेखर
कोड्लीपेट, कोडागु
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